अतिरिक्त >> रोशनी की नदी रोशनी की नदीअश्वघोष
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सरजू धीरे-धीरे घर की ओर बढ़ रहा था। उसके पैरौं में तेजी नहीं थी। आज उसे लग रहा था, जैसे किसी ने उसके पैरों की शक्ति खींच ली हो। उसके सिर में दर्द भी था। पहले उसने सोचा कि वह रोजाना की तरह बस पकड़ ले।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
रोशनी की नदी
सरजू धीरे-धीरे घर की ओर बढ़ रहा था। उसके पैरौं में तेजी नहीं थी। आज उसे
लग रहा था, जैसे किसी ने उसके पैरों की शक्ति खींच ली हो। उसके सिर में
दर्द भी था। पहले उसने सोचा कि वह रोजाना की तरह बस पकड़ ले। लेकिन उसे आज
किराए के पाँच रुपए भी बड़ी रकम लग रहे थे। उसने सोचा और नहीं तो इन पांच
रुपयों से वह कई दिनों तक श्यामू के लिए टॉफियां ला सकता है।
श्यामू सरजू का बेटा था। कहने को वह केवल अभी तीन साल का ही था। लेकिन सरजू ने मजबूर होते हुए भी, उसके वे भी शौक पूरे किए थे, जिन्हें मध्यवर्ग के लोग बड़े लोगों की नकल में पूरा करते हैं। वह खाने-पीने से लेकर कपड़े-लत्ते तक का पूरा ख्याल रखता था। सोचता था,
कि एक ही तो बच्चा है। उसे भी अगर गरीबी की भभक लग गई तो वह भी उसी की तरह जवानी में बूढ़ा हो जाएगा। सरजू की पत्नी सलौनी भी यही चाहती थी। उसकी नजर में उसका श्यामू किसी राजकुमार से कम नहीं था। वह हमेशा उसे साफ-सुथरा और स्वस्थ रखती थी।
उसे संतुलित आहार खिलाती थी। जिससे वह हमेशा फूल-सा खिला रहता था।
सरजू भी अच्छी तरह जानता था, कि तीन साल के श्यामू में जितने भी गुण हैं, वे सब सलौनी की मेहनत के कारण ही हैं। वह रात-दिन श्यामू की देख-भाल में लगी रहती थी।
उसने तो श्यामू की खातिर अपनी अच्छी-खासी नौकरी भी लात मार दी थी। हालांकि कि सरजू को अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन वह सरजू से बोली, ‘‘एक वक्त खा लेंगे, लेकिन श्यामू की देखभाल में कोई कमी नहीं आने देंगे। उसे खूब-पढ़ाएंगे-लिखाएंगे। बड़ा आदमी बनाएंगे। वह हमारी तरह मजदूरी नहीं करेगा।’’ सलौनी के तर्क के आगे सरजू ठंडा पड़ गया था।
श्यामू सरजू का बेटा था। कहने को वह केवल अभी तीन साल का ही था। लेकिन सरजू ने मजबूर होते हुए भी, उसके वे भी शौक पूरे किए थे, जिन्हें मध्यवर्ग के लोग बड़े लोगों की नकल में पूरा करते हैं। वह खाने-पीने से लेकर कपड़े-लत्ते तक का पूरा ख्याल रखता था। सोचता था,
कि एक ही तो बच्चा है। उसे भी अगर गरीबी की भभक लग गई तो वह भी उसी की तरह जवानी में बूढ़ा हो जाएगा। सरजू की पत्नी सलौनी भी यही चाहती थी। उसकी नजर में उसका श्यामू किसी राजकुमार से कम नहीं था। वह हमेशा उसे साफ-सुथरा और स्वस्थ रखती थी।
उसे संतुलित आहार खिलाती थी। जिससे वह हमेशा फूल-सा खिला रहता था।
सरजू भी अच्छी तरह जानता था, कि तीन साल के श्यामू में जितने भी गुण हैं, वे सब सलौनी की मेहनत के कारण ही हैं। वह रात-दिन श्यामू की देख-भाल में लगी रहती थी।
उसने तो श्यामू की खातिर अपनी अच्छी-खासी नौकरी भी लात मार दी थी। हालांकि कि सरजू को अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन वह सरजू से बोली, ‘‘एक वक्त खा लेंगे, लेकिन श्यामू की देखभाल में कोई कमी नहीं आने देंगे। उसे खूब-पढ़ाएंगे-लिखाएंगे। बड़ा आदमी बनाएंगे। वह हमारी तरह मजदूरी नहीं करेगा।’’ सलौनी के तर्क के आगे सरजू ठंडा पड़ गया था।
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